राजीव सुबह सुबह ही अपना बेग पेक कर रहा है। चेहरे पर मायूसी है। लेकिन जल्दी में भी है। इसलिये फोन की घंटी बार बार बजने के बाद भी उसे नहीं उठा रहा है शायद कुछ सोच रहा है।
बेग भरने के बाद उसको फोन की याद आयी। फिर उसे यह भी याद आया की शायद फोन बजा था। उसने अपना फोन ढूंढा। देखा तो उसमे उसकी बेटी के 5 मिस कॉल थे।
राजीव ने उसे फोन किया।
राजीव – हाँ कनिका बोलो।
कनिका – पापा में आपको कब से फोन लगा रही थी आप फोन क्यूँ नहीं उठा रहें थे।
राजीव – वो में थोड़ा बिजी था।
कनिका – आप घर पर है यह बाहर।
राजीव – अभी तो घर हूँ लेकिन निकल रहा हूँ
राजीव की बात पूरी होने के पहले ही कनिका ने बोलना शुरू कर दिया।
कनिका – घर ही रहना मैं आ रही हूँ।
राजीव – आ रही हो लन्दन से ऐसे अचानक क्या हुआ।
राजीव की बेटी कनिका लन्दन में पढ़ाई कर रही थी। कोर्स पूरा होने के बाद उसने वही प्रैक्टिस भी शुरू कर दी थी। राजीव के बुलाने पर भी जो नहीं आ रही थी। वो ऐसे अचानक आ गई तो राजीव को थोड़ा शौक लगना लाजमी था। राजीव वही सोफे पर बैठ गया औऱ भरा बेग उसकी साइड में है। थोड़ी देर में कनिका आ गई।
राजीव – राजीव क्या हुआ तुम अचानक कैसे आ गई।
कनिका – पापा अभी आप मुझ से कुछ नहीं पूछिए आपको अगर मेरे यहाँ आने से कुछ प्रॉब्लम है तो में कहीं ओर चली जाती हूँ।
राजीव – कैसी बात कर रही हो। अच्छा ठीक है।
राजीव ने अपना बेग उठाया और कहाँ।
राजीव – ठीक है तुम रुको मुझे जाना होगा।
कनिका – कहाँ
राजीव – पापा को मिलने जाना है। यह बोलते समय उसकी आँखों में जो उदासी थी उससे कनिका कुछ समझी
कनिका – में भी आती हूँ।
राजीव हल्का सा मुस्कुराया। दोनों निकल पड़े। कार में बैठे करीब 6 घंटे लगे उन्हें वहाँ पहुंचने में।
राजीव के पिताजी अपने पुराने घर में ही रहते थे। कई बार राजीव ने उन्हें वहाँ से अपने साथ चलने को कहाँ लेकिन उन्होंने कहाँ की तुम्हारा कोई ठिकाना नहीं कभी कहीं रहते हो का कभी कहीं मुझे यही अच्छा लगता है।
राजीव और कनिका सीधे उनके कमरे में पहुँचे।वो बिस्तर पर लेटे थे। हालत थोड़ी ठीक नहीं थी। अब इस उम्र में अक्सर ऐसा हो जाता है।
कनिका – दादा जी। ( सीधा दादा से लिपट गई )
दादा – अरे मेरी बच्ची अच्छा हुआ तू आ गई। नहीं तो मुझे लगा की क्या पता अब तुझे देख पाऊंगा या नहीं।
राजीव – कैसी बातें करते है पापा।
कनिका – दादा जी मुझे कुछ बात करनी है। आप से।
दादा जी – हाँ बोल मेरी बच्ची।
तब कनिका ने अपने ब्रेकअप के बारे में दादाजी को बताया। राजीव भी वही खड़ा सुन रहा था। उसे भी पता चल गया की उसके यहाँ आने का कारण क्या था। यह सब सुनने के बाद दादाजी
दादा जी – क्या तुम आजकल के बच्चे.. प्यार करते हो एक इस तेरे बाप को ही देख लें तलाक लेकर अकेला बैठा है। लव मैरिज की थी। पता नहीं फिर कहाँ चला गया लव। तुम मुझसे कुछ सीखे नहीं।
कनिका – दादा जी आपकी भी कुछ लव स्टोरी है।में तो आपसे सब शेयर करती हूँ और आप।
दादा जी – हाँ एक प्यारी सी जिसको सोचता हूँ तो आज भी खुश हो जाता हूँ। तू कभी मिली नहीं फुर्सत में की तुझे सुना सकूँ।
कनिका – दादी के साथ ही था, या कोई और कहानी है।
राजीव – कनिका अभी दादा जी को आराम करने दो.
दादा जी – अरे तू चूप कर। आराम ही करना है अब मुझे जब तक हूँ तब तक बात करने दें।
दादाजी ने कनिका को अपने पास बैठने को कहाँ।और अपनी कहानी सुनाना शुरू कर दिया।
हमारे जमाने में माता पिता शादी के पहले पूछते नहीं थे। यहाँ तक की हमको भी नहीं पता होता था की हमारी शादी की कोई बात चल रही।
जल्दी ही शादी हो जाया करती थी। बर्थडे यह सब कोई याद नहीं रखता था। इसलिये उम्र का सही अंदाजा नहीं होता था। यह पता होता था की होली का डंडा जब गड़ा था तब तू 2 महीने का था ऐसा हमारे माता पिता हमको बताते थे।
ऐसे ही एक दिन पिताजी हमको बैल गाड़ी में बैठा कर लें गये साथ में माँ भी थी। और मेरे सभी 6 भाई बहन। बेल गाड़ी में जाना भी उस समय बड़ी बात थी। सुबह से हम लोग खुश हो जाया करते थे की आज तो बैल गाड़ी में जायेंगे।
पिताजी लें गये अपने एक दोस्त के यहाँ हमें तो यह पता था की उनके किसी दोस्त से मिलने जा रहें है। वहाँ पहुँचे तो देखा तो उनकी हालत भी कोई ज्यादा अच्छी नहीं थी। बडा सा बाड़ा था उनका और छोटा सा घर।
गुड़ और पानी देकर स्वागत किया। हमको भी मिला। हम सब भाई बहन और उनके यहाँ के भी कुछ मिलकर खेल रहें थे।
तभी पिताजी ने कहाँ की श्याम बेटा इधर आ। में वहाँ गया तो मुझे बोला “जा इस पाटे पर बैठ जा”।
कनिका ने बीच में टोका
कनिका – पाटा क्या होता।
राजीव – लकड़ी का पटिया बैठने के लिये होता।
दादाजी ने फिर अपनी कहानी शुरू की।
मुझे बैठने को कहाँ तो में बैठा तो उसके बाद उनके दोस्त आये मुझे टिका लगाया और 1 रुपया और नारियल लाल कपडे के साथ मुझे दें दिया।
मेरे पापा खुश थे। माँ अंदर कमरे में थी। सारी महिलायें वही। मुझे जितना दिखाई दिया वहाँ भी किसी को नारियल दिया।
इतना बडा तो में हो गया था की यह सब समझ जाऊ। मैंने पहले भी सुना था की फलाने ने फलाने को नारियल देकर रोका कर लिया।
मुझे अब समझ आ गया था। की मेरी शादी होने वाली है। बस फिर उलझ कूद बंद और एकदम से में सयाना बन गया। वही बड़ो ने शादी की तारिक 1 महीने बाद की तय भी कर ली
कनिका ने फिर बीच में टोका
कनिका – वो दादी थी।
दादा जी – थोड़ा सब्र कर अभी तुझे धीरे धीरे सब पता चल जायेगा।
दादा जी ने फिर कहानी को आगे बड़ाया।
वहाँ से आये तो शादी की तैयारियां शुरू हो गई थी। गोबर से घर को लिपना, खटिया बांधना और भी बहुत कुछ छोटा मोटा जो बन सकता था और में मन में खुश जवान था हर किसी को जवानी में जो होता है वही सब ख्याल।
लड़की से बात करना तो दूर। तस्वीर तक नहीं देखी थी। बस माँ बापू ने देखा उन्होंने ही तय कर दिया। मुँह दिखाई की रस्म का मतलब हमारे ही जवाने में था।
अब करीब 5 दिन ही रह गये थे शादी में। पिताजी ने 2 4 बेल गाड़िया कर ली थी। लेकिन फिर एक सुबह कुछ खुसर फुसर सुनाई दी।
किसी ने आकर जानकारी दी की तुम्हारी बहूँ का पैर टूट गया। उस समय कौन जाता था डॉक्टर के पास इतना पैसा भी नहीं था,वेद जी जो बोला किया। उन्होंने तो चलने की कोई जिम्मेदारी नहीं ली थी। कहाँ कब चलेगी पता नहीं चलेगी या नहीं यह भी पता नहीं।
कुएँ की मुंडेर से निचे गिरी थी। निचे टूटा मटका था। उस पर जाकर घुटना लगा। घुटना 2- 3 भागो में टूट गया था।
माँ को सभी महिलाये बोल रही थी। शायद तुम्हारे भाग में नहीं है। अब शादी को मना कर दो। पहली शादी है तुम्हारी भी उम्मीदें है। और अगर नयी बहूँ आकर बिस्तर में ही पड़ी रहें तो क्या मतलब है ऐसी शादी का।
माँ ने मन बना लिया था की अब शादी नहीं होगी
कनिका ने फिर बीच में टोका
कनिका – मतलब वो दादी नहीं थी।
दादा जी सिर्फ हसे- बोले अब तू आगे सुन।
उसी शाम को उनके दोस्त लड़की के पिता हमारे घर आ गये। आकर बैठे पिताजी के आगे हाथ जोड़े और कहाँ की।
माफ़ करना लेकिन अब यह शादी नहीं हो सकती हमारी लड़की चलेगी, की नहीं, यह पता नहीं। हम आप लोगो को अँधेरे में नहीं रखना चाहते।
अंदर कमरे से माँ सुन रही थी में उनके साथ ही था उस वक्त उनके चेहरे पर जो राहत थी वो मैंने साफ साफ देखी। में तो बता भी नहीं सकता की किस हालत में था। बिना देखें ही मेरी शादी पक्की हुई और अब टूट भी रही। सपने देखने के लिये भी एक चहेरे की जरुरत होती है। मेरे पास तो वो भी नहीं था। बस अपनी ही ख्याल में एक चेहरा बनाया था। उसी से शादी का ख्याल किया और अब उसी से टूट जानें का ख्याल भी करना पड़ रहा था।
लेकिन इतने में मेरे पिताजी बोले।
क्या बात कर रहें हो महाराज शादी है 4 दिन में जाकर तैयारी करें। वही हमारे घर की बहूँ बनेगी
लेकिन वो चल नहीं सकती।
ना चले तो हमारा नसीब। मान लीजिये यह घटना अगर शादी के बाद होती तो। तब हम क्या छोड़ देते। शादी कर दीजिये और बच्ची को वही आराम करने दें थोड़े दिन। यहाँ आना जाना अभी ठीक नहीं है। जब कुछ आराम होगा तब हम लें आएंगे।
पिताजी की बात से उनके दोस्त की आँखों में आंसू आ गये। लेकिन माँ का मुँह फूल गया। पिताजी को भी पता था की माँ नाराज है। क्यूँ की बर्तन की आवाज कुछ ज्यादा आ रही थी घर से। लेकिन माँ की इतनी हिम्मत नहीं थी पिताजी को कुछ बोले। और में तो फिर क्या ही बोलता।
बारात 5 दिन बाद गई। निर्धारित समय पर फेरे भी हुऐ। और में अब बताता हूँ वो तुम्हारी दादी थी। मेरे साथ फेरे ना सिर्फ तुम्हारी दादी ने लिये बल्कि उसके पिताजी यानि की मेरे ससुर ने भी लिये। उसको गोद में उठा कर।
कनिका बस अब शांत और चेहरे पर मुस्कान लिये सुन रही है।
कनिका – फिर दादी घर कब आयी।
दादा जी ने फिर सुनाना शुरू किया।
घर कहाँ शादी हुई लेकिन अभी तक चेहरा भी नहीं देखा मैंने उसका। इतना लम्बा घूँघट लेकर बैठी थी। मैंने वेद जी बात की थी
उसके घर वाले उसका इलाज कर रहें। मुझे पता चला की एक जंगली झाड़ी को पीस कर उसका लेप लगाने से जल्दी ठीक होता है। मुझे जल्दी थी इसलिये सब से पूछता रहता था।
3 साल तक उसके घर वालों और मेरे घरवालों से छिप कर में उसके लिये वो पीसी झाड़ी। उसके घर भिजवाता था। असर हुआ उसका, मेरे प्यार और विश्वास का । 3 साल और कुछ महीने बाद वो चल पायी। और फिर मेरे घर आयी।
कनिका सुनती रह गई। आश्चर्य से उसकी आँखे बस दादा जी को देखें जा रही थी।
राजीव की आँखों में भी आंसू थे। माँ को याद कर रहा था।
दादा जी – वो दिन है और उसके जाते वक्त तक का दिन है उसने कभी मेरा साथ नहीं छोड़ा। कभी कभी लड़ती थी तो में कहता था की ज्यादा लड़ेगी तो तेरे बाप को लें आऊंगा उसने भी मेरे साथ फेरे लिये है।
यह सुन कर तीनो ज़ोर ज़ोर से हॅसने लगे। दादा जी को ज़ोर से खासी आने लगी तो राजीव ने कहाँ बस कनिका अब इन्हे आराम करने दो रात भी हो गई है।
कनिका ने जाते जाते कहाँ।
कनिका – वाह दादा जी क्या बात है मान गये की आप गये आपको। कल आगे की कहानी सुनाना।
कनिका ने सोचा की आगे की और कहानियाँ दादा जी से सुनेगी।
अगली सुबह दादा जी नहीं रहें। अचानक ही किसी को बिना बताये बिना परेशान किये चूप चाप इस दुनियाँ से चले गये।
कनिका आँखों में आंसू लिये बस उनको देखें जा रही थी। जाते जाते भी दादा जी उसे प्यार क्या होता है यह बता गये।
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यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है। इसके पात्र घटनाये स्थान नाम भी काल्पनिक है। इसका किसी के भी जीवन से मेल खाना महज एक सयोंग होगा। कहानी का उद्देश्य केवल मनोरंजन करना है। कृपया इसे उसी तरह से लिया जाये। पाठक अपने विवेक का इस्तेमाल करें।