
फिजूलखर्ची रोकने, सामाजिक समरसता और गरीब बेटियों की मदद के लिए ग्रामीणों ने दिखाई पहल
समस्तीपुर, बिहार | 3 जुलाई 2025 — बिहार के समस्तीपुर ज़िले के एक प्रखंड में शामिल सात गांवों ने विवाह समारोहों में होने वाली फिजूलखर्ची, दहेज प्रथा और तेज़ संगीत पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है। यह फैसला ग्रामीणों की एक सामूहिक बैठक में लिया गया, जिसका उद्देश्य सामाजिक सुधार, आर्थिक समानता, और गरीब परिवारों की बेटियों की शादी में मदद करना है।
🌾 गांवों की ऐतिहासिक पंचायत बैठक
इस सामाजिक सुधार की शुरुआत समस्तीपुर ज़िले के विद्यापतिनगर प्रखंड के अंतर्गत आने वाले सात गांवों — हरपुर, सराय, लक्ष्मीपुर, मिर्जापुर, बरियारपुर, बाघी और रामपुर — में हुई, जहां स्थानीय पंचायत और ग्रामीणों ने मिलकर एक सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया।
बैठक 1 जुलाई 2025 को सराय गांव के पंचायत भवन में हुई, जिसमें सभी समुदायों के प्रतिनिधि, वरिष्ठ नागरिक, युवाओं के संगठन और महिलाओं की भागीदारी रही। बैठक का संचालन मुखिया राजीव चौधरी ने किया।
📢 क्या फैसले लिए गए?
बैठक में लिए गए मुख्य फैसले:
- दहेज देना या लेना पूरी तरह निषिद्ध रहेगा। यदि कोई इसका उल्लंघन करता है, तो पूरे गांव में उसका सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा।
- शादी में डीजे बजाना, पटाखे छोड़ना या बैंड-बाजे का उपयोग करना पूर्णतः वर्जित होगा।
- बरातियों की संख्या 50 तक सीमित की जाएगी ताकि खान-पान पर अनावश्यक खर्च कम हो।
- गरीब परिवारों की बेटियों की शादी में सामूहिक मदद के लिए हर गांव में एक शादी सहायता कोष (Marriage Support Fund) बनाया जाएगा।
✍️ क्यों उठाया गया यह कदम?
समाज में बढ़ते दहेज लोभ, शादी समारोहों में बढ़ती फिजूलखर्ची, और आर्थिक असमानता ने इन गांवों के लोगों को झकझोर कर रख दिया था। कई गरीब परिवार कर्ज में डूबकर शादी करते हैं, और कई जगह बेटियों की शादी टल जाती है सिर्फ इसीलिए कि वे दहेज देने में असमर्थ हैं।
सराय गांव के निवासी और सामाजिक कार्यकर्ता प्रभात मिश्रा ने कहा:
“हमारे गांवों में कई ऐसे परिवार हैं जो बेटियों की शादी के लिए ज़मीन बेचने या महाजन से ऊँचे ब्याज पर कर्ज लेने को मजबूर हो जाते हैं। यह फैसला सिर्फ एक नियम नहीं, बल्कि एक आंदोलन है जिससे हम बदलाव की शुरुआत कर रहे हैं।”
📊 सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव की ओर
बिहार में इस प्रकार का निर्णय पहली बार नहीं है, लेकिन एक साथ सात गांवों द्वारा सामूहिक प्रतिबंध लगाना एक मजबूत सामाजिक संकेत देता है।
साल 2023 में बिहार सरकार ने ‘मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना’ को पुनर्संचालित किया था, जिसमें दहेज रहित विवाह पर ₹25,000 की प्रोत्साहन राशि दी जाती थी। अब ग्रामीण समाज भी खुद से आगे आकर बदलाव की दिशा में कदम बढ़ा रहा है।
महिला ग्रामसभा सदस्य कविता देवी ने कहा:
“इस फैसले से न सिर्फ बेटियों को समान अधिकार मिलेगा, बल्कि समाज में लड़के-लड़कियों की बराबरी की सोच भी मजबूत होगी।”
🎯 आगे की योजना
पंचायत ने यह भी बताया कि आने वाले हफ्तों में:
- स्कूलों और पंचायत भवनों में दहेज विरोधी जागरूकता अभियान चलाए जाएंगे
- हर गांव में “सादा विवाह, सुंदर समाज” नाम से पोस्टर लगाए जाएंगे
- युवा मंडल मिलकर शपथ अभियान चलाएगा जिसमें लड़के व उनके परिवार दहेज लेने से इंकार करेंगे
🏛️ प्रशासन की प्रतिक्रिया
समस्तीपुर के उप-विकास आयुक्त डॉ. शैलेंद्र कुमार ने इस निर्णय की सराहना करते हुए कहा:
“यह पहल न केवल सामाजिक दृष्टि से अनुकरणीय है, बल्कि प्रशासन भी ऐसे बदलावों को समर्थन देगा। यदि पंचायतें सहयोग करें तो हम इस मॉडल को अन्य प्रखंडों में भी लागू कर सकते हैं।”
📌 निष्कर्ष
बिहार के इन सात गांवों की यह ऐतिहासिक पहल एक नई शुरुआत का संकेत है। जब ग्रामीण खुद जागरूक होकर सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने का बीड़ा उठाते हैं, तो बदलाव संभव होता है। यह फैसला सिर्फ कानून से नहीं, संवेदना और सहयोग से आया है।
अगर ऐसे प्रयास अन्य जिलों और राज्यों में दोहराए जाएं, तो दहेज, फिजूलखर्ची और शादी में दिखावे की प्रथा पर एक ठोस चोट मारी जा सकती है।
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