भारत ने कहा: “दलाई लामा का उत्तराधिकारी वही तय करेंगे चीन नहीं

भारत ने कहा: "दलाई लामा का उत्तराधिकारी वही तय करेंगे, चीन नहीं"

भारत ने दलाई लामा की विरासत को लेकर चीन की दखल की कोशिशों को किया खारिज, तिब्बती समुदाय को दी भरोसे की भावना

नई दिल्ली – भारत सरकार ने चीन द्वारा दलाई लामा के उत्तराधिकारी की नियुक्ति पर प्रभाव डालने की कोशिश को सख्ती से नकारते हुए स्पष्ट किया है कि इस विषय में निर्णय केवल दलाई लामा का विशेषाधिकार है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने गुरुवार को कहा कि धार्मिक उत्तराधिकार का फैसला धार्मिक समुदाय और उसके प्रमुख के हाथ में होता है, न कि किसी राजनीतिक सत्ता के।

यह प्रतिक्रिया चीन के उस हालिया बयान के बाद आई है जिसमें बीजिंग ने संकेत दिया था कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी को चीन की मंजूरी से मान्यता दी जाएगी


📌 भारत का जवाब क्यों महत्वपूर्ण है?

चीन लंबे समय से तिब्बती बौद्ध धर्म और दलाई लामा संस्था पर राजनीतिक नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश करता रहा है। बीजिंग की मंशा है कि अगला दलाई लामा उसकी शर्तों पर नियुक्त हो ताकि वह तिब्बती आंदोलन को शांत कर सके।

भारत, जहां 14वें दलाई लामा 1959 से निर्वासन में रह रहे हैं, ने पहली बार इस विषय पर खुलकर विरोध दर्ज किया है

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर झा ने कहा:

“दलाई लामा के उत्तराधिकारी का निर्णय एक धार्मिक विषय है। इसमें किसी भी सरकार को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है, और न ही यह स्वीकार्य है।”


🕉️ दलाई लामा कौन हैं और उत्तराधिकारी का महत्व क्या है?

14वें दलाई लामा, जिनका असली नाम तेनज़िन ग्यात्सो है, तिब्बती बौद्ध धर्म के सबसे बड़े धार्मिक नेता हैं। वे तिब्बतियों के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक प्रतीक माने जाते हैं। भारत में उनका निवास स्थान धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) है, जहां तिब्बती सरकार-इन-एक्साइल भी स्थित है।

परंपरा के अनुसार, दलाई लामा का उत्तराधिकारी पुनर्जन्म के आधार पर खोजा जाता है। लेकिन चीन इस परंपरा को तोड़कर किसी सरकारी नियंत्रण वाले प्रक्रिया के तहत अगला दलाई लामा नियुक्त करना चाहता है।


🎙️ तिब्बती समुदाय की प्रतिक्रिया

भारत में बसे तिब्बती शरणार्थियों और धर्मगुरुओं ने भारत सरकार के रुख की प्रशंसा की है

तिब्बती धर्मगुरु गेशे लोबसांग छोडेन ने कहा:

“यह निर्णय हमारे अस्तित्व की रक्षा करता है। हमें गर्व है कि भारत, जो हमारी दूसरी मातृभूमि है, हमारी धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान करता है।”

धर्मशाला निवासी और तिब्बती युवा नेता तेनज़िन छेरिंग ने बताया:

“हम चीन द्वारा दलाई लामा की संस्था के राजनीतिकरण का विरोध करते हैं। भारत का समर्थन हमें हिम्मत देता है।”


🏛️ अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में भारत की स्थिति

भारत का यह स्टैंड अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण संदेश देता है कि धार्मिक संस्थाओं में सरकार का हस्तक्षेप अस्वीकार्य है। अमेरिका, यूरोपीय संघ और जापान भी पहले इस विषय में दलाई लामा की स्वतंत्रता का समर्थन कर चुके हैं।

2020 में अमेरिका ने “Tibetan Policy and Support Act” पारित किया था, जिसमें यह प्रावधान था कि दलाई लामा का उत्तराधिकारी केवल तिब्बती समुदाय द्वारा तय किया जाएगा।


📚 चीन की पुरानी रणनीति

चीन पहले भी पंचेन लामा की नियुक्ति में दखल दे चुका है, जिसे अधिकांश तिब्बती स्वीकार नहीं करते। 1995 में नियुक्त किए गए गेडुन चोएकी न्यिमा को तिब्बती समुदाय असली पंचेन लामा मानता है, लेकिन वह गायब हैं। चीन ने एक सरकारी समर्थित पंचेन लामा नियुक्त कर रखा है, जिसे व्यापक मान्यता नहीं मिली।

अब बीजिंग चाहता है कि अगला दलाई लामा भी उसी पैटर्न पर उसके इशारे पर नियुक्त किया जाए, जिसे भारत ने पूरी तरह खारिज कर दिया है


🔍 भारत सरकार की रणनीति और आगे की राह

विश्लेषकों का मानना है कि भारत ने यह बयान भारत-चीन संबंधों में स्पष्ट संदेश देने के लिए दिया है। पिछले कुछ वर्षों में लद्दाख में सीमा तनाव, व्यापारिक प्रतिबंध और कूटनीतिक ठंडेपन के बीच यह बयान सांस्कृतिक संप्रभुता का पक्ष रखने का संकेत देता है।

भारतीय विदेश मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया कि:

“भारत हमेशा से यह मानता रहा है कि तिब्बत की सांस्कृतिक पहचान और धार्मिक परंपराओं को सुरक्षित रखने का अधिकार तिब्बती समुदाय का है।”


🧾 निष्कर्ष

भारत का यह स्पष्ट रुख न केवल तिब्बती समुदाय के साथ खड़ा होने का प्रतीक है, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय मंच पर धार्मिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक संरक्षण की दिशा में एक ठोस कदम है।

चीन की “दलाई लामा के उत्तराधिकारी पर दावा” की नीति को लेकर अब अंतरराष्ट्रीय आलोचना तेज हो सकती है, और भारत इसमें मुख्य भूमिका निभा रहा है। यह मसला आने वाले महीनों में भारत-चीन संबंधों के केंद्र में रह सकता है

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